Wednesday, 20 July 2022

छोटी सी जिंदगी

मरियल सा हो गया था वह, कंकाल मात्र। पिछले माह उसके आस पास बहुत चहल पहल थी, बहुत लाड़ प्यार से लाया गया था उसे यहाँ। बहुत से लोगों की आँखों का तारा सा हो गया था वह। फूले नहीं समा रहा था वह भी।फिर अचानक न जाने क्या हुआ, उसके आस पास जो चहल पहल थी वह उस दिन के बाद फिर न दिखी उसे। जिस स्नेह की वर्षा उस पर की जा रही थी, वह बादल फिर बने ही नहीं । उस दिन के ठीक एक माह और 12 दिन बाद अचानक फिर से वही चहल पहल उसे महसूस हुई अपने आस पास। मरणासन्न था वह, तब भी धुँधली आँखों से कुछ कुछ देख पा रहा था। बहुत से लोग थे, जिस हर्ष और उल्लास के साथ उसे यहाँ लाया गया था, आज कुछ और लाये जा रहे थे। हँसी, ठहाकों से गुंजित हो उठी थी मरु धरा। आँखे बंद होने लगीं, तब भी कुछ कुदालों की आवाजें, मिट्टी हटाने की खर खर और तालियों की गड़गड़ाहट वह सुन पा रहा था। फिर उसे रौंदते हुये कई लोग जाने लगे, वह मृत्यु के आगोश में समा गया। 5 जून को रोपी गई उस नन्हीं जान की जान कब निकल गई, उसे रोपने वाले को भी नहीं पता। नया पौधा हर्षित है अभी, किन्तु कल.... @Jitendra Rai "Jeet"

Wednesday, 25 August 2021

"मुस्कुराहटें" व्यक्ति की असफलताओं के पीछे भी व्यक्ति का ही हाथ होता है, किसी स्त्री, पुरुष का नहीं।

"मुस्कुराहटें" Jitendra Rai अपनी कार को सड़क पर दौड़ाये जा रहा था वह। बहुत गमगीन था। अभी अभी मित्र को शादी की सालगिरह की शुभकामना भेजी थी उसने। उसी क्षण उसे याद आया कि आज तो उसकी भी सालगिरह है, और याद हो आये उसे बर्बादी के 10 साल। पल पल की मौत। सब कुछ होते हुये आज कुछ नहीं था उसके पास। गर्मी बहुत थी तो एक पेड़ के नीचे एक ठेली के पास कार पार्क की उसने। जलजीरे का ठेला था। "एक गिलास बर्फ डालकर देना भाई" वह बोला। "जी साब, अभी लीजिये।" वह पास ही रखी बेंच पर बैठ गया और फिर उन्हीं सोचों में डूब गया। "आज गर्मी है, तुम ठाड़े ठाड़े थक गए हो, बैठ जाबो हियां। लाबो मैं बना देऊं।" महिला के शब्दों में गजब का स्नेह था। उसने सर उठाकर देखा। सामान्य सा चेहरा, पुराने कपड़ों में थी वह। चेहरे पर मुस्कुराहट। "अरे नाहीं हम कर लेब" " कैसी बात करत हो मुनिया के बापू। हम हैं न। हम पत्नी हैं तोहरी, सब जानत हैं तुहार। कब थके हो, कब भूख लागै है, कब नींद और कब प्यार आवे है" बोलते ही खिलखिलाकर हँस पड़ी वह। "तू भी ना, मुनिया की अम्मा, 25 बरस हो गये शादी को पर तुहार ई मसखरी नाहीं गई।" "लो बाबूजी, ठंडा जलजीरा" गिलास आगे बढ़ाते हुये वह बोली। उसने गिलास लिया और देखा कि दोनों फिर से अपनी चुटीली बातों और हँसी ठिठोली में मशगूल हो गये हैं। उसने अपनी कार की ओर देखा फिर उस जलजीरे की ठेली की तरफ, बरबस मुस्कुराहट आ गई उसके चेहरे पर। @ Short stories by Jitendra Rai.

Sunday, 22 August 2021

औकात

उदय शंकर अहलावत, एक रौबदार व्यक्तित्व। पूरे शहर में तूती बोलती थी उसकी। विशाल बंगला, कई गाड़ियां, नौकर चाकर। उस शहर में उससे धनी और रसूखदार कोई और था भी नहीं। वह उस शहर को अक्सर पिद्दियों का शहर कहता था। @Jitendra Rai "किसी की औकात नहीं यहाँ जो मुझसे नज़र मिलाकर बात कर सके। मिट्टी में रेंगने वाले कीड़े बसते हैं यहाँ, पिद्दी भर के।" आसमानों में घर था शायद उसका, जमीन पर देखता ही नहीं था। उसके पैसों और शोहरत के कदमों तले न जाने कितने ही रोज कुचले जाते थे, उसके क्रोध की तपन में न जाने कितने ही रोज झुलसते थे। सामने तो लोग डरते थे उससे, कुछ भी नहीं कह पाते थे, पर पीठ पीछे अक्सर लोग बातें करने लगते थे। " उदय शंकर अहलावत जी वास्तव में यू. एस. ए.( Uday Shankar Ahlawat: U.S.A.) ही हैं। अपने सामने किसी को कुछ भी नहीं समझते।" " भैया ऊ अमरीका ही हैं।" कुछ दिन पहले ही विदेश यात्रा से लौटा था वह। अभी वहाँ की बड़ी बड़ी बातों और शानों शौकत के कसीदे घर व शहर में पढ़ भी न पाया था कि अचानक पहले बुखार फिर खाँसी का दौर चलने लगा। सर फटने सा लगा। अपनी जगह पर खड़ा होना तक मुश्किल हो गया। हॉस्पिटल में एडमिट किया गया। सफ्ताह भर में ही अपार धन सम्पदा, शोहरत का स्वामी धाराशाई हो गया। एक पिद्दी भर के कीड़े की औकात ज्यादा बड़ी थी। @ Short stories by Jitendra Rai "Jeet"

Thursday, 22 July 2021

गन्दे नाले की मछली Jitendra Rai " Jeet"


 "गंदे नाले की मछली"   

वह सुंदर थी, बेहद सुंदर, पर किसी गंदे नाले में जी रही थी। मैं साफ पानी मे उन्मुक्त था। उसे देखा तो कहीं अंदर से आवाज आई कि उसे भी अपने साथ साफ पानी में ले आऊं। कई दिनों तक बात करता रहा उससे, पर जब भी उस गंदगी में जाता था,नाक पर रुमाल रखना पड़ता था। वह भी खुश थी, बहुत अधिक खुश। साफ पानी की जिंदगी के ख्वाब वह भी देखने लगी थी। एक दिन उसकी जिंदगी से अपनी जिंदगी की तुलना कर बैठा। वह नाराज हो गई, बहुत ज्यादा नाराज। मैं बोला कब तक गंदगी में पड़ी रहोगी, फिर और ज्यादा नाराज हो गई। मैं चाहता था उसे अपने साथ रखूं किन्तु वह कुछ ऐसा बोली कि हृदय फट पड़ा, सीने में दर्द उठ गया। बोली मैं यहां ज्यादा खुश हूं, नहीं चाहिए स्वच्छ जल। मैं जानता था वह गलत थी। इसलिए जिद कर बैठा उसे साफ पानी मे लाने की, उसने कीचड़ उछाल दिया मेरी तरफ।

Short stories by Jitendra Rai "Jeet"

Sunday, 16 May 2021

हामिद का चिमटा


 "हामिद का चिमटा"

Jitendra Rai 'Jeet'

  बूढ़ा हामिद छत पर एक कोने में पड़ी चारपाई पर उदास लेटा हुआ है। घर की दहलीज उसने पूरे डेढ़ साल से नहीं लांघी है। कुछ देर पहले ही महमूद का फोन आया था कि नूरे इस जहाँ से रुख़्सत हो चुका है और सम्मी अस्पताल में है। कुछ साल पहले की बात होती तो वह उन दोनों की बीमारी में उनका पूरा साथ देता, बिल्कुल भी अकेला नहीं छोड़ता। 

   किन्तु 2020 और 21 ! उफ्फ!  

   बेबसी के आँसू उसकी आँखों से उतरकर, झुर्रीदार गालों में बहने का रास्ता तलाशने लगे।

 अभी शबनम आई छत पर, उछलती कूदती, कि आप तो ईदगाह के किस्से कहते नहीं अघाते थे। ईदगाह में यह मिलता है, वह मिलता है। हर तरफ खुशियाँ होतीं हैं। हमारे हिस्से की ईदगाह कहाँ है दादाजी?

वह निरुत्तर।

कैसे कहे कि इस दफ़ा ईद कब्रगाह की ओर है।

"मेरी ईदी दो न दादाजी"

बमुश्किल उठा वह चारपाई से। इधर उधर देखा। अकस्मात उसकी नज़र एक कोने में जंग खाये चिमटे पर पड़ी। उसे याद हो आये नाउम्मीदी में जीती दादी अमीना के वह आँसू, आँखे, जिनमें शून्य था किंतु दुआएँ थीं, उम्मीदें पोते पर सिमट आईं थीं। हामिद कल बड़ा होगा और सब कुछ ठीक हो जायेगा। 

  उसने चिमटा साफ किया, और शबनम के हाथों में सौंप दिया।।

इस उम्मीद में कि कल सब कुछ ठीक हो जायेगा।

@ Jitendra Rai "Jeet"

लेखक परिचय

नाम- जितेन्द्र राय 'जीत’

शैक्षिक योग्यता- एम. ए. ( अंग्रेजी), बी़ एड. 

जन्मतिथि- 06 अप्रैल 1981

कवि एवं लेखक

जिला अध्यक्ष

हिन्दी साहित्य भारती

चम्पावत।

मूलनिवास का पता- 

ग्राम- बजवाड़,

 विकास खण्ड- पाबौ

जिला- पौड़ी गढ़वाल

 उत्तराखण्ड

पिन- 246123

मोबाइल नम्बर- 8006551851

              9528475725

वर्तमान में राजकीय सेवा में चम्पावत, उत्तराखंड में कर्मरत

Wednesday, 28 April 2021

सच्चू गाँव लौट आया: लॉकडाउन 2020 की कहानियाँ


 
   दिल्ली दूर ही अब। जीन्स टी शर्ट में खुद को बादशाह तुगलक समझने का भ्रम भी टूट गया और उन मॉल्स, बिग बाजारों से मोह भी भंग हो गया। मकान मालिक ही शहंशाह है, अब लगा सच्चू को, तो आना पड़ा अपने ही  गाँव, उस शाही राजधानी को छोड़कर।
 घर आया तो टी शर्ट के कॉलर नीचे थे। उस गांव, खोलों, धारों, खेतों पर असीम प्यार उमड़ घुमड़ रहा था उसके सीने में। 14 दिन प्राइमरी स्कूल में रहा, पर वह 14 दिन उसे उस दिल्ली की मायावी दुनिया से ज्यादा सुकून भरे लगे।
 घर पहुँचा तो समस्याएँ जस की तस थीं। पिताजी बीमार, बहन बिमुली की सगाई तो हो गई थी पर शादी कैसे हो, माँ किस तरह घर के खर्चे उठाये?
 वह बड़ी मुश्किल से निकला था लॉकडाउन से और किसी तरह घर पहुँचा था। मिठाई की दुकान में ही तो था, कितने रुपये ला पाया होगा। गाँव में बहुत से लोग पहले ही आ गये थे, उनके पास रुपये थे तो ठहाके लगा रहे थे हर खोलों में। उसकी शादी की बात भी कई जगह इस वजह से चल रही थी कि सच्चू दिल्ली में जॉब करता है।
   राजनैतिक वायदों के बजाय उसने बचपन याद किया। पिताजी ही तो उसके बाल काटते थे बचपन में, वह क्यों लोगों के बाल नहीं काट सकता? उसे बचपन से ही लिंगड़े बहुत पसंद हैं, तो वह लोग जो गाँव आ गये हैं , उन्हें पसंद नहीं होंगे क्या? 
 तो सैलून खोल लिया उसने गाँव में ही, एक सब्जी की दुकान भी।  10 लोग बाल कटवाने आये पहले दिन, सब्जी लेने भी आये कई लोग।  400 रुपये की कमाई हुई। 
@ Jitendra Rai "Jeet"

लघु कथा ’सच्चू गाँव लौट आया’  

     लेखक परिचय

नाम- जितेन्द्र राय 'जीत’

शैक्षिक योग्यता- एम. ए. ( अंग्रेजी), बी़ एड. 

जन्मतिथि- 06 अप्रैल 1981

कवि एवं लेखक

जिला अध्यक्ष

हिन्दी साहित्य भारती

चम्पावत।

मूलनिवास का पता- 

ग्राम- बजवाड़,

 विकास खण्ड- पाबौ

जिला- पौड़ी गढ़वाल

 उत्तराखण्ड

पिन- 246123

मोबाइल नम्बर- 8006551851

              9528475725

वर्तमान में राजकीय सेवा में चम्पावत, उत्तराखंड में कर्मरत।

Tuesday, 27 April 2021

वह मजदूरन: लॉकडाउन 2020 की कहानियाँ


 वह मजदूरन

  क्या कुछ नहीं दिखाया था जिंदगी ने उसे। जिंदगी के सुनहरे दिन भी और भुूख से लड़तीं रातें भी। पति को गुजरे वर्षों हो गये, एक बेटा है जो अपनी पत्नी व बच्चों के साथ पास ही शहर में मकान बनाकर रहते हुए सब कुछ भूल चुका है। किन्तु उसे सब कुछ याद है, जब वह मजदूरी करके घर लौटती थी, थकी हारी, तो बेटे का चेहरा देखने मात्र से उसमें ताजगी का संचार हो जाता था। उसके लिये खुशी का कारण सिर्फ यह है कि शहर में उसके बेटे का मकान है और वह वहाँ खुश है। साल में दो चार बार हो आती है वहाँ किन्तु वहाँ न जाने उसे क्यों लगता है कि वह बोझ ही है उनके लिये, तो लौट आती है एक दो दिन में ही।

  इस बार भी गयी, दो दिन बेटे, बहू और पोते पोती को जीभर निहारकर लौट आई फिर गाँव। उसकी दिनचर्या फिर पहले जैसी हो गयी,सुबह जल्दी उठना,लकड़ी के लिये जाना, खेत और क्यारियों में काम करना, फिर खाना बनाना और खाकर मजदूरी पर चली जाना। शाम को घर लौटती तो कोई चेहरा नहीं होता था जिसे देखकर उसमें ताजगी आती। जल्दी खाना खाकर चुपचाप सो जाती थी। 

  शहर से गाँव आये छः दिन ही हुये थे उसे कि पहले हल्की खांसी आनी शुरू हुई। अगले दिन से बदन भी गर्म रहने लगा। वह फिर भी किसी तरह सुबह उठती और अपनी दिनचर्या के सभी काम करती, मजदूरी पर नहीं जा पा रही थी सिर्फ। फिर उसे एक सुबह सांस लेने में भी दिक्कत होने लगी तो वह दिनभर बाहर टहलती रही। शाम तक कुछ राहत मिली पर शरीर टूटने सा लगा। दिनभर कुछ भी नहीं बना पाई थी, तो भूख भी लग गयी थी। जैसे तैसे उसने खिचड़ी बनाई और निढाल होकर सो गयी।

  अगली सुबह जब वह उठी तब भी थकान सी थी पर वह अपने दैनिक कार्यों में जुट गयी। कुछ दिन यही क्रम रहा किन्तु उसने अपनी दिनचर्या के कार्य नहीं छोड़े।

  और एक दिन फिर वह मजदूरी पर लौट गयी।

  उसे पता ही नहीं है कि जो कोरोना मुम्बई जैसे असंख्य महानगरों, शहरों, गाँवों के लिये तबाही का सबब बना हुआ है, उसने उसी को मात दे दी है।

                                                      - जितेन्द्र राय ’जीत’   


      ’वह मजदूरन’  

     लेखक परिचय

नाम- जितेन्द्र राय ’जीत’

शैक्षिक योग्यता- एम. ए. ( अंग्रेजी), बी़ एड. 

जन्मतिथि- 06 अप्रैल 1981

कवि एवं लेखक

जिला अध्यक्ष

हिन्दी साहित्य भारती

चम्पावत।

मूलनिवास का पता- 

ग्राम- बजवाड़,

 विकास खण्ड- पाबौ

जिला- पौड़ी गढ़वाल

 उत्तराखण्ड

पिन- 246123

मोबाइल नम्बर- 8006551851

              9528475725

वर्तमान में राजकीय सेवा में चम्पावत, उत्तराखंड में कर्मरत।

छोटी सी जिंदगी

मरियल सा हो गया था वह, कंकाल मात्र। पिछले माह उसके आस पास बहुत चहल पहल थी, बहुत लाड़ प्यार से लाया गया था उसे यहाँ। बहुत से लोगों की आँखों ...