जीत की कहानियाँ
Wednesday, 20 July 2022
छोटी सी जिंदगी
Wednesday, 25 August 2021
"मुस्कुराहटें" व्यक्ति की असफलताओं के पीछे भी व्यक्ति का ही हाथ होता है, किसी स्त्री, पुरुष का नहीं।
Sunday, 22 August 2021
औकात
Thursday, 22 July 2021
गन्दे नाले की मछली Jitendra Rai " Jeet"
"गंदे नाले की मछली"
वह सुंदर थी, बेहद सुंदर, पर किसी गंदे नाले में जी रही थी। मैं साफ पानी मे उन्मुक्त था। उसे देखा तो कहीं अंदर से आवाज आई कि उसे भी अपने साथ साफ पानी में ले आऊं। कई दिनों तक बात करता रहा उससे, पर जब भी उस गंदगी में जाता था,नाक पर रुमाल रखना पड़ता था। वह भी खुश थी, बहुत अधिक खुश। साफ पानी की जिंदगी के ख्वाब वह भी देखने लगी थी। एक दिन उसकी जिंदगी से अपनी जिंदगी की तुलना कर बैठा। वह नाराज हो गई, बहुत ज्यादा नाराज। मैं बोला कब तक गंदगी में पड़ी रहोगी, फिर और ज्यादा नाराज हो गई। मैं चाहता था उसे अपने साथ रखूं किन्तु वह कुछ ऐसा बोली कि हृदय फट पड़ा, सीने में दर्द उठ गया। बोली मैं यहां ज्यादा खुश हूं, नहीं चाहिए स्वच्छ जल। मैं जानता था वह गलत थी। इसलिए जिद कर बैठा उसे साफ पानी मे लाने की, उसने कीचड़ उछाल दिया मेरी तरफ।
Short stories by Jitendra Rai "Jeet"
Sunday, 16 May 2021
हामिद का चिमटा
"हामिद का चिमटा"
Jitendra Rai 'Jeet'
बूढ़ा हामिद छत पर एक कोने में पड़ी चारपाई पर उदास लेटा हुआ है। घर की दहलीज उसने पूरे डेढ़ साल से नहीं लांघी है। कुछ देर पहले ही महमूद का फोन आया था कि नूरे इस जहाँ से रुख़्सत हो चुका है और सम्मी अस्पताल में है। कुछ साल पहले की बात होती तो वह उन दोनों की बीमारी में उनका पूरा साथ देता, बिल्कुल भी अकेला नहीं छोड़ता।
किन्तु 2020 और 21 ! उफ्फ!
बेबसी के आँसू उसकी आँखों से उतरकर, झुर्रीदार गालों में बहने का रास्ता तलाशने लगे।
अभी शबनम आई छत पर, उछलती कूदती, कि आप तो ईदगाह के किस्से कहते नहीं अघाते थे। ईदगाह में यह मिलता है, वह मिलता है। हर तरफ खुशियाँ होतीं हैं। हमारे हिस्से की ईदगाह कहाँ है दादाजी?
वह निरुत्तर।
कैसे कहे कि इस दफ़ा ईद कब्रगाह की ओर है।
"मेरी ईदी दो न दादाजी"
बमुश्किल उठा वह चारपाई से। इधर उधर देखा। अकस्मात उसकी नज़र एक कोने में जंग खाये चिमटे पर पड़ी। उसे याद हो आये नाउम्मीदी में जीती दादी अमीना के वह आँसू, आँखे, जिनमें शून्य था किंतु दुआएँ थीं, उम्मीदें पोते पर सिमट आईं थीं। हामिद कल बड़ा होगा और सब कुछ ठीक हो जायेगा।
उसने चिमटा साफ किया, और शबनम के हाथों में सौंप दिया।।
इस उम्मीद में कि कल सब कुछ ठीक हो जायेगा।
@ Jitendra Rai "Jeet"
लेखक परिचय
नाम- जितेन्द्र राय 'जीत’
शैक्षिक योग्यता- एम. ए. ( अंग्रेजी), बी़ एड.
जन्मतिथि- 06 अप्रैल 1981
कवि एवं लेखक
जिला अध्यक्ष
हिन्दी साहित्य भारती
चम्पावत।
मूलनिवास का पता-
ग्राम- बजवाड़,
विकास खण्ड- पाबौ
जिला- पौड़ी गढ़वाल
उत्तराखण्ड
पिन- 246123
मोबाइल नम्बर- 8006551851
9528475725
वर्तमान में राजकीय सेवा में चम्पावत, उत्तराखंड में कर्मरत
Wednesday, 28 April 2021
सच्चू गाँव लौट आया: लॉकडाउन 2020 की कहानियाँ
लघु कथा ’सच्चू गाँव लौट आया’
लेखक परिचय
नाम- जितेन्द्र राय 'जीत’
शैक्षिक योग्यता- एम. ए. ( अंग्रेजी), बी़ एड.
जन्मतिथि- 06 अप्रैल 1981
कवि एवं लेखक
जिला अध्यक्ष
हिन्दी साहित्य भारती
चम्पावत।
मूलनिवास का पता-
ग्राम- बजवाड़,
विकास खण्ड- पाबौ
जिला- पौड़ी गढ़वाल
उत्तराखण्ड
पिन- 246123
मोबाइल नम्बर- 8006551851
9528475725
वर्तमान में राजकीय सेवा में चम्पावत, उत्तराखंड में कर्मरत।
Tuesday, 27 April 2021
वह मजदूरन: लॉकडाउन 2020 की कहानियाँ
वह मजदूरन
क्या कुछ नहीं दिखाया था जिंदगी ने उसे। जिंदगी के सुनहरे दिन भी और भुूख से लड़तीं रातें भी। पति को गुजरे वर्षों हो गये, एक बेटा है जो अपनी पत्नी व बच्चों के साथ पास ही शहर में मकान बनाकर रहते हुए सब कुछ भूल चुका है। किन्तु उसे सब कुछ याद है, जब वह मजदूरी करके घर लौटती थी, थकी हारी, तो बेटे का चेहरा देखने मात्र से उसमें ताजगी का संचार हो जाता था। उसके लिये खुशी का कारण सिर्फ यह है कि शहर में उसके बेटे का मकान है और वह वहाँ खुश है। साल में दो चार बार हो आती है वहाँ किन्तु वहाँ न जाने उसे क्यों लगता है कि वह बोझ ही है उनके लिये, तो लौट आती है एक दो दिन में ही।
इस बार भी गयी, दो दिन बेटे, बहू और पोते पोती को जीभर निहारकर लौट आई फिर गाँव। उसकी दिनचर्या फिर पहले जैसी हो गयी,सुबह जल्दी उठना,लकड़ी के लिये जाना, खेत और क्यारियों में काम करना, फिर खाना बनाना और खाकर मजदूरी पर चली जाना। शाम को घर लौटती तो कोई चेहरा नहीं होता था जिसे देखकर उसमें ताजगी आती। जल्दी खाना खाकर चुपचाप सो जाती थी।
शहर से गाँव आये छः दिन ही हुये थे उसे कि पहले हल्की खांसी आनी शुरू हुई। अगले दिन से बदन भी गर्म रहने लगा। वह फिर भी किसी तरह सुबह उठती और अपनी दिनचर्या के सभी काम करती, मजदूरी पर नहीं जा पा रही थी सिर्फ। फिर उसे एक सुबह सांस लेने में भी दिक्कत होने लगी तो वह दिनभर बाहर टहलती रही। शाम तक कुछ राहत मिली पर शरीर टूटने सा लगा। दिनभर कुछ भी नहीं बना पाई थी, तो भूख भी लग गयी थी। जैसे तैसे उसने खिचड़ी बनाई और निढाल होकर सो गयी।
अगली सुबह जब वह उठी तब भी थकान सी थी पर वह अपने दैनिक कार्यों में जुट गयी। कुछ दिन यही क्रम रहा किन्तु उसने अपनी दिनचर्या के कार्य नहीं छोड़े।
और एक दिन फिर वह मजदूरी पर लौट गयी।
उसे पता ही नहीं है कि जो कोरोना मुम्बई जैसे असंख्य महानगरों, शहरों, गाँवों के लिये तबाही का सबब बना हुआ है, उसने उसी को मात दे दी है।
- जितेन्द्र राय ’जीत’
’वह मजदूरन’
लेखक परिचय
नाम- जितेन्द्र राय ’जीत’
शैक्षिक योग्यता- एम. ए. ( अंग्रेजी), बी़ एड.
जन्मतिथि- 06 अप्रैल 1981
कवि एवं लेखक
जिला अध्यक्ष
हिन्दी साहित्य भारती
चम्पावत।
मूलनिवास का पता-
ग्राम- बजवाड़,
विकास खण्ड- पाबौ
जिला- पौड़ी गढ़वाल
उत्तराखण्ड
पिन- 246123
मोबाइल नम्बर- 8006551851
9528475725
वर्तमान में राजकीय सेवा में चम्पावत, उत्तराखंड में कर्मरत।
छोटी सी जिंदगी
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