Wednesday, 25 August 2021
"मुस्कुराहटें" व्यक्ति की असफलताओं के पीछे भी व्यक्ति का ही हाथ होता है, किसी स्त्री, पुरुष का नहीं।
"मुस्कुराहटें" Jitendra Rai
अपनी कार को सड़क पर दौड़ाये जा रहा था वह। बहुत गमगीन था। अभी अभी मित्र को शादी की सालगिरह की शुभकामना भेजी थी उसने। उसी क्षण उसे याद आया कि आज तो उसकी भी सालगिरह है, और याद हो आये उसे बर्बादी के 10 साल। पल पल की मौत। सब कुछ होते हुये आज कुछ नहीं था उसके पास। गर्मी बहुत थी तो एक पेड़ के नीचे एक ठेली के पास कार पार्क की उसने। जलजीरे का ठेला था।
"एक गिलास बर्फ डालकर देना भाई" वह बोला।
"जी साब, अभी लीजिये।"
वह पास ही रखी बेंच पर बैठ गया और फिर उन्हीं सोचों में डूब गया।
"आज गर्मी है, तुम ठाड़े ठाड़े थक गए हो, बैठ जाबो हियां। लाबो मैं बना देऊं।"
महिला के शब्दों में गजब का स्नेह था। उसने सर उठाकर देखा। सामान्य सा चेहरा, पुराने कपड़ों में थी वह। चेहरे पर मुस्कुराहट।
"अरे नाहीं हम कर लेब"
" कैसी बात करत हो मुनिया के बापू। हम हैं न। हम पत्नी हैं तोहरी, सब जानत हैं तुहार। कब थके हो, कब भूख लागै है, कब नींद और कब प्यार आवे है" बोलते ही खिलखिलाकर हँस पड़ी वह।
"तू भी ना, मुनिया की अम्मा, 25 बरस हो गये शादी को पर तुहार ई मसखरी नाहीं गई।"
"लो बाबूजी, ठंडा जलजीरा" गिलास आगे बढ़ाते हुये वह बोली।
उसने गिलास लिया और देखा कि दोनों फिर से अपनी चुटीली बातों और हँसी ठिठोली में मशगूल हो गये हैं।
उसने अपनी कार की ओर देखा फिर उस जलजीरे की ठेली की तरफ, बरबस मुस्कुराहट आ गई उसके चेहरे पर।
@ Short stories by Jitendra Rai.
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बहुत सुंदर विश्लेषण, हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद, अभिवादन।
Deleteसुन्दर
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद, अभिवादन।
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