पुस्तक समीक्षा
काव्य संग्रह- मुझे वो दीप बना दो
कवयित्री- कमला वेदी
प्रकाशक- समय साक्ष्य
मूल्य- 100/-
"उम्मीद, विश्वास व हौसलों की कवितायें"
अक्सर व्यक्ति विपरीत परिस्थितियों के सम्मुख आत्मसमर्पण कर देते हैं, गहन दुखों को ही नियति मान लेते हैं। कम ही व्यक्ति होते हैं जो कठिन वक्त पर भी अपने बुलन्द हौसलों व सकारात्मकता से विजय हासिल कर लेते हैं व निराशाओं के अंधेरों में भी उम्मीद का दीप रोशन कर लेते हैं। कमला वेदी जी का प्रथम काव्य संग्रह 'मुझे वो दीप बना दो' उन्हीं हौसलों, उम्मीदों व बुलंदियों को छूने की जिजीविसा की बानगी है।
"दुनिया के जुल्मों सितम पर भी
मैं मौन गुंजार करती रही
दुनिया मेरी सहनशक्ति को
मेरी कमजोरी समझती रही
मुझे वो आवाज बनना है
जो आवाज हजारों की हो चले
मुझे वो दीप बना दो
जो तूफ़ां में भी जले।"
शीर्षक कविता 'मुझे वो दीप बना दो' उन हौसलों व उत्कर्ष छूने की उत्कंठा को बखूबी प्रस्तुत करती है। यही जिजीविसा आसमां छूना है कविता में भी झलकती है-
"किसको मिली मंजिल मुकम्मल यहाँ
मुझे बस खुद ही मुकाम तक पहुँचना है
कष्ट कंटकों को चीर आगे बढ़ना है।"
जीवन रणभूमि है कविता भी इसी सकारात्मकता व कुछ कर गुजरने के भाव को आगे बढ़ाती है।
"दुर्गा, काली, चंडी बन मैं
जीवन रण कौशल दिखलाऊँगी
मर जाऊँ, मिट जाऊँ पर
अपना अस्तित्व जीतकर लाऊँगी।"
काव्य संग्रह में सम्मिलित कवितायें समयांतराल में लिखी गई हैं अतः अंतःकरण के उद्घाटन के साथ ही अन्य विषय भी छुये गये हैं। कवयित्री की प्रकृति के प्रति संवेदनशीलता व सौंदर्यबोध भी स्पर्श करता है। 'ईश्वर की रचना' कविता की कुछ पंक्तियां-
"प्रकृति की हर दिशा, दशा
धूप छांव से निखरी है
पुष्प पल्लवों पर सिंदूरी
शबनमी छटा बिखरी है।"
श्रृंगारिक रचनाओं में सूफियाना तर्ज पर रूहानी प्रेम के भाव हैं। आत्मिक, उन्नत व बन्धनमुक्त श्रृंगारिक रचनायें यथा 'अंजुरी भर प्रेम का पात्र' 'गीत' ' एक तुम जो छेड़ दो' 'बंजर धरा' उसी आत्मिक संयोग को प्रस्तुत करतीं हैं।
"अशरीरी हो मिलन
रूप यौवन हो या ज़रा हो।"
पंक्तियां सदाबहार 'न उम्र की सीमा हो न जन्म का हो बंधन' गीत से भाव हृदय में जाग्रत करतीं हैं।
'विदीर्ण हृदय' कविता तकनीकी व सोशल मीडिया के युग में वास्तविक रिश्तों में आते रूखेपन पर चिंता व्यक्त करती है।
'टुकड़े टुकड़े हो गया
माँ बाप का वजूद
पालकर कुर्सी दे दी
अब चुकाये रोकर सूद'
कोरोना संक्रमण और इससे उत्पन्न त्रासदी विकराल रूप धारण करती जा रही है। 'कोरोना और हालात' कविता में इस विषय पर सिर्फ चिंता ही व्यक्त नहीं कि गई है बल्कि चिंतन भी प्रस्तुत किया गया है। इंसानी स्वार्थपरकता, अति तृष्णा पर आक्रोश भी व्यक्त किया गया है। इसी विषय पर 'कोरोना का कहर' व 'समय की मार' कविताओं में कोरोना के मानव जीवन पर पड़ते प्रभाओं की सम्वेदनाओं को झकझोरती अभिव्यक्ति हुई है।
'देश के ये हालात हैं, हर तरफ कहर है
महामारी, भुखमरी हर ओर फैला ज़हर है।
'मुझे वो दीप बना दो' कविता संग्रह में कुल 36 रचनायें हैं। काव्य कला की दृष्टि से देखूँ तो ज्यादातर रचनायें छंदबद्ध हैं और इनमें लयात्मकता है। भाषा सहज, सरल होने के कारण आम पाठक भी कवयित्री के भावों से आसानी से जुड़ जाता है। अलंकारों का स्वाभाविक प्रयोग हुआ है यथा यमक अंलकार का एक उदाहरण 'जीवन रणभूमि है' कविता में -
"समय चक्र रेत है
कस लूँ, कुछ पल कस के।"
बिम्ब और प्रतीक भी कवयित्री के काव्य को सहज बनाते हैं।
काव्य गुण तीन प्रकार के होते हैं-
1.माधुर्य गुण, जो काव्य पाठक का हृदय आनन्द से द्रवित कर देता है।
2. ओज गुण, उत्साह उत्पन्न करता है।
3. प्रसाद गुण- मन प्रसन्नता से भर देता है।
संग्रह की अधिकतर रचनायें ओज गुण से परिपूर्ण हैं जो पाठकों में उत्साह का संचार करतीं हैं।
'परिंदे' कविता में दार्शनिकता व प्रतीकात्मकता है।
कमला वेदी जी का यह प्रथम काव्य संग्रह है तथापि उनकी रचनाओं में गहन भाव व परिपक्वता दृष्टिगोचर होती है। संक्षेप में कहूँ तो कवयित्री आदिशक्ति का आह्वान करतीं हैं, वर्तमान हालातों पर चिंता व्यक्त करतीं हैं व भविष्य हेतु सकारात्मकता का संदेश देतीं हैं।
समीक्षक-
जितेन्द्र राय "जीत"
लेखक व जिला अध्यक्ष
हिन्दी साहित्य भारती
चम्पावत।
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