"मिठाई" (1)
Jitendra Rai
सच्चू ने इसी साल इण्टर पास किया। आगे की कोई राह नहीं थी, न मां बाप के पास इतना पैसा कि आगे की पढ़ाई के लिये 25 किलोमीटर दूर पैठाणी भेज पाते। एक आम उत्तराखण्डी की तरह उसने भी दिल्ली की राह पकड़ी। जल्द ही एक मिठाई की दुकान में नौकरी भी मिल गई। 15 अगस्त को घर से छोटी बहन विमुली का फोन आया कि भैजी आज स्कूल में बहुत से कार्यक्रम हुये। गुरूजी तुम्हें याद कर रहे थे कि सच्चू की आवाज बहुत अच्छी थी। उसने बताया कि उन्हें बूंदी भी खाने को मिली जिसे बचाकर वह थोड़ा सा मां के लिये भी लाई। तभी एक ग्राहक आ गया और मालिक ने सच्चू से एक किलो बर्फी तोलने को कहा। उसे फोन काटना पड़ा। बर्फी तोलते हुये उसे 15 अगस्त की बूँदियों की याद आ गई और उसके मुंह में पानी भर आया.....क्षण भर पश्चात् आंखों में भी।
@ Short stories by Jitendra Rai "जीत"
Jitendra Rai
सच्चू ने इसी साल इण्टर पास किया। आगे की कोई राह नहीं थी, न मां बाप के पास इतना पैसा कि आगे की पढ़ाई के लिये 25 किलोमीटर दूर पैठाणी भेज पाते। एक आम उत्तराखण्डी की तरह उसने भी दिल्ली की राह पकड़ी। जल्द ही एक मिठाई की दुकान में नौकरी भी मिल गई। 15 अगस्त को घर से छोटी बहन विमुली का फोन आया कि भैजी आज स्कूल में बहुत से कार्यक्रम हुये। गुरूजी तुम्हें याद कर रहे थे कि सच्चू की आवाज बहुत अच्छी थी। उसने बताया कि उन्हें बूंदी भी खाने को मिली जिसे बचाकर वह थोड़ा सा मां के लिये भी लाई। तभी एक ग्राहक आ गया और मालिक ने सच्चू से एक किलो बर्फी तोलने को कहा। उसे फोन काटना पड़ा। बर्फी तोलते हुये उसे 15 अगस्त की बूँदियों की याद आ गई और उसके मुंह में पानी भर आया.....क्षण भर पश्चात् आंखों में भी।
@ Short stories by Jitendra Rai "जीत"
बहुत कम शब्दों में बहुत सी यादें ताजा कर गए गुरुदेव
ReplyDeleteस्नेहिल आभार।
Deleteबहुत ही सुंदर सर लेकिन उससे भी अधिक सराहनीय है कि आप अपने व्यस्त दिनचर्या में से समय निकालते हो लिखने के लिए 🙏प्रणाम गुरुवर
ReplyDeleteबहुत सा स्नेह। गढ़वाल में था किन्तु समाज से दूर ही रहा। पुस्तकों तक ही सीमित था। कुछ आवश्यकताएं थीं, कुछ ख्वाब। अब जो भी वक्त है समाज, विकृतियों और देवभूमि की समस्याओं पर लिखने के लिए है। खुश रहो। कलम को ऊर्जा पाठक ही देतें हैं।
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