Tuesday, 17 September 2019

मेमसाब

"मेमसाब" Jitendra Rai
  अभी अभी होटल से निकलीं थीं मेमसाब। एक अलहदा शान। कीमती वस्त्र। हर डग में शाहीपन। इधर उधर देखा और सब्जी मंडी में प्रवेश किया। बांछे खिल गईं सब्जीवालों की। हर नज़र उन पर स्थिर। हर कोई अपनी दुकान, रेहड़ी की तरफ उन्हें बुलाने लगा। बाजार में नई आस जगी थी। भीमू की दुकान पर कदम ठहरे  मेमसाब के। भीमू की तो सांसे ही थम गईं। आज तो काफी बिक्री हो जाएगी। सर माथे पर उठा लिया उसने मेमसाब को। बीच बीच में बाकी सब्जीवालों की इर्ष्यामय निगाहों का जायजा भी लेता जा रहा था। बोला मेरे यहाँ हमेशा ताज़ी सब्जियां ही होतीं हैं मेमसाब, क्या तोल दूं ? उलटतीं पटलतीं रहीं मेमसाब सब्जियों को, बिना कुछ बोले। कुछ भिंडिया तोड़ीं और  बोलीं आधा किलो तोल दो,  भिंडी तोड़ने का सिलसिला जारी रहा। भीमू खुशी खुशी तोलने लगा। जब कांटा बीचों बीच आया तो भड़क उठीं मेमसाब। कितना मुनाफा कमाओगे, कुछ तो झुकने दो कांटे को। भीमू ने कुछ भिंडियां और बढ़ा दीं और थैली में डाल दीं। मेमसाब ने तोड़ी हुई भिंडियां उसी थैली में रख दीं। फिर बारी आई बैंगन, बीन्स की। कीड़े होते हैं बैगन में, बीन्स अक्सर कोमल नहीं होतीं कहकर उन्हें भी तोड़ना मसलना शुरू कर दिया। कांटा भी झुकवा लिया, तोड़े मरोड़े बैंगन व बीन्स जबरन थैली में प्रवेश करते रहे। तीनों सब्जियां आधा आधा किलो ही। खुशी खुशी भीमू ने थैली मेमसाब को थमा दी। फिर भड़क उठी मेमसाब। सब्जियों के साथ मिर्च और धनिया तो सभी देते हैं, तुम अनोखे हो शायद। भीमू ने मुठ्ठीभर हरी मिर्च और हरा धनिया भी डाल दिया। कुल पैसों का मेमसाब ने राउंड फीगर भी करवा लिया, और चल पड़ीं उसी शाही शान से। भीमू खुश था। अगल बगल के सब्जीवाले इस दरमियान भीमू के नफे नुकसान का आगणन कर चुके थे। धेले भर का भी मुनाफा नहीं हुआ था भीमू को।
@ Short stories by Jitendra Rai "जीत"

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