काव्य संग्रह: अपना अपना जीवन
रचनाकार: हिमांशु जोशी
प्रकाशक: उत्कर्ष प्रकाशन
मूल्य: ₹ 100
" अतीत के सुनहरे पन्ने"
अंग्रेजी में एक टर्म है 'Nostalgia'. इसे हिंदी में कहें तो'अतीत के सुखद प्रसंगों की याद से उभरी आनंद और विषाद की मिश्रित भावना।' हम वर्तमान में जीतें हैं किंतु हमारे जीवन में जो वक्त सबसे अधिक आनन्द में बीता होता है, उस वक्त की यादें हमारे मनोमस्तिष्क में स्थायी हो जातीं हैं और हम उन पलों को, उस समय को पुनः पुनः जीना चाहते हैं। 'अपना अपना जीवन' काव्य संग्रह की अधिकतर रचनायें उसी सुनहरे अतीत की स्मृतियां हैं। काव्य संग्रह में संकलित रचनायें यथा ' बचपन की यादें' 'वो दिन पुराने' 'जब.....' 'स्कूल का बस्ता अच्छा था' कवि के हृदय में चिरस्थायी उस अतीत को ही रेखांकित करतीं हैं व फिर से उस वक्त में लौट जाने की अभिलाषा व्यक्त करतीं हैं।
बचपन की यादें कविता की कुछ पंक्तियां:
"पर कुछ धुँधली स्मृतियां मेरे बचपन की
अब भी मन को तड़पातीं हैं
मैं भुलाने का प्रयास करता हूँ इन्हें
पर ये आकर मेरे मन को उद्वेलित कर जातीं हैं।"
'वो पुराने दिन' कविता का तो आरम्भ ही उन मधुर स्मृतियों से होता है: वो पुराने दिन अच्छे थे
जब हम छोटे बच्चे थे।"
' वो स्कूल का बस्ता अच्छा था' पाठकों को उनकी स्वयं की स्मृतियों में भी ले जाती है।
"वो साइकिल वो सैर सपाटा, वो चूरन सस्ता अच्छा था,
इस बोझ भरे जीवन से तो, स्कूल का बस्ता अच्छा था".
प्रतिनिधि कविता 'अपना अपना जीवन' को भी मैं इसी श्रेणी में रखता हूँ। जब लेखक की मुलाकात एक अनजान व्यक्ति से होती है और फिर वह भी उन्हीं स्मृतियों का हिस्सा बन जाता है। वार्तालाप के उपरांत कवि का सुकोमल हृदय और सहृदयता इस कविता का सृजन कर लेती है व रचना उस व्यक्ति की आवाज बन जाती है।
"बेघर, बेसहारा, गरीब हैं हम
शायद इसीलिये हमारी आवाज की
कहीं सुनवाई नहीं होती।"
कवि की अपनी माँ के प्रति अथाह आस्था व श्रद्धा काव्य संग्रह में उन्हीं यादों की मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति है। यह आस्था व श्रद्धा ही उनके काव्य सृजन का आधार भी है, जैसा कि वह पुस्तक के 'समर्पण' पर भी अपने भाव व्यक्त करते हैं। 'इसलिये कि मेरी माँ हो तुम', 'तुम्हारी याद आती है, 'किस तरह....' रचनायें स्पर्श करतीं हैं।
"उँगली पकड़ चलना सिखलाया तुमने
जीवन का पहला पाठ पढ़ाया तुमने,
मेरी नन्हीं उड़ान का आसमां हो तुम
इसलिये कि मेरी माँ हो तुम।"
कवि का प्रकृति प्रेम व सौंदर्यबोध उनके काव्य को सरस बनाता है साथ ही वह शहरीकरण पर अपनी चिंता भी व्यक्त करते हैं। ' बसन्त आ गया' कविता की कुछ पंक्तियाँ:
" प्रकृति की खिलखिलाहट, चिड़ियों की चहचहाहट
ऋतु की मादकता से हो जाता है आभास
कि बसन्त आ गया हैं।'
"पर जहाँ प्रकृति है न चिड़ियों के बसेरे
न ऋतु की मादकता न वृक्ष ही घनेरे
फिर वहाँ कैसे होगा आभास
कि बसन्त आ गया है ?
उत्तराखण्ड के जनमानस के दर्द को बखूबी उकेरा गया है। 'एक कदम' 'उसके बिना' व 'मुझको भी आगे बढ़ना है' संदेशपरक रचनायें हैं जो काव्य संग्रह को सार्थकता प्रदान करतीं हैं।
काव्य कला की दृष्टि से देखूँ तो सभी रचनायें छंदबद्ध हैं। कुछ रचनाओं में कवि प्रारम्भ तो मुक्त भाव से करते हैं किंतु पुनः छंदबद्ध हो जाते हैं। अपनी बात को सीधे सीधे अभिव्यक्त करने के कारण कविताओं में अलंकारिकता से परहेज किया गया हैं।
बिम्ब हिमांशु जोशी जी के काव्य की सबसे बड़ी विशेषता है। जैसे जैसे पाठक कविताओं में उतरता जाता है उसके मानस पटल पर गाँव, बचपन, घर, परिवार, खेल, प्रकृति के चित्र उभरने लगते हैं। रचनायें माधुर्य व प्रसाद गुण से परिपूर्ण हैं।
संक्षेप में कहूँ तो कवि अतीत को सँजो कर रखना चाहते हैं। उनकी स्मृतियों में खेत हैं, गाँव हैं, त्योहार हैं। वहाँ डाकिया है, अंतर्देशीय, पोस्ट कार्ड, दादा दादी व परियों की कहानियाँ, सँयुक्त परिवार, बचपन के खेल, शरारते, बहाने हैं और वहां ....माँ है।
समीक्षक: जितेन्द्र राय 'जीत'
लेखक व जिला अध्यक्ष
हिंदी साहित्य भारती
चम्पावत।
सम्पर्क: 8006551851