Wednesday, 28 April 2021

सच्चू गाँव लौट आया: लॉकडाउन 2020 की कहानियाँ


 
   दिल्ली दूर ही अब। जीन्स टी शर्ट में खुद को बादशाह तुगलक समझने का भ्रम भी टूट गया और उन मॉल्स, बिग बाजारों से मोह भी भंग हो गया। मकान मालिक ही शहंशाह है, अब लगा सच्चू को, तो आना पड़ा अपने ही  गाँव, उस शाही राजधानी को छोड़कर।
 घर आया तो टी शर्ट के कॉलर नीचे थे। उस गांव, खोलों, धारों, खेतों पर असीम प्यार उमड़ घुमड़ रहा था उसके सीने में। 14 दिन प्राइमरी स्कूल में रहा, पर वह 14 दिन उसे उस दिल्ली की मायावी दुनिया से ज्यादा सुकून भरे लगे।
 घर पहुँचा तो समस्याएँ जस की तस थीं। पिताजी बीमार, बहन बिमुली की सगाई तो हो गई थी पर शादी कैसे हो, माँ किस तरह घर के खर्चे उठाये?
 वह बड़ी मुश्किल से निकला था लॉकडाउन से और किसी तरह घर पहुँचा था। मिठाई की दुकान में ही तो था, कितने रुपये ला पाया होगा। गाँव में बहुत से लोग पहले ही आ गये थे, उनके पास रुपये थे तो ठहाके लगा रहे थे हर खोलों में। उसकी शादी की बात भी कई जगह इस वजह से चल रही थी कि सच्चू दिल्ली में जॉब करता है।
   राजनैतिक वायदों के बजाय उसने बचपन याद किया। पिताजी ही तो उसके बाल काटते थे बचपन में, वह क्यों लोगों के बाल नहीं काट सकता? उसे बचपन से ही लिंगड़े बहुत पसंद हैं, तो वह लोग जो गाँव आ गये हैं , उन्हें पसंद नहीं होंगे क्या? 
 तो सैलून खोल लिया उसने गाँव में ही, एक सब्जी की दुकान भी।  10 लोग बाल कटवाने आये पहले दिन, सब्जी लेने भी आये कई लोग।  400 रुपये की कमाई हुई। 
@ Jitendra Rai "Jeet"

लघु कथा ’सच्चू गाँव लौट आया’  

     लेखक परिचय

नाम- जितेन्द्र राय 'जीत’

शैक्षिक योग्यता- एम. ए. ( अंग्रेजी), बी़ एड. 

जन्मतिथि- 06 अप्रैल 1981

कवि एवं लेखक

जिला अध्यक्ष

हिन्दी साहित्य भारती

चम्पावत।

मूलनिवास का पता- 

ग्राम- बजवाड़,

 विकास खण्ड- पाबौ

जिला- पौड़ी गढ़वाल

 उत्तराखण्ड

पिन- 246123

मोबाइल नम्बर- 8006551851

              9528475725

वर्तमान में राजकीय सेवा में चम्पावत, उत्तराखंड में कर्मरत।

Tuesday, 27 April 2021

वह मजदूरन: लॉकडाउन 2020 की कहानियाँ


 वह मजदूरन

  क्या कुछ नहीं दिखाया था जिंदगी ने उसे। जिंदगी के सुनहरे दिन भी और भुूख से लड़तीं रातें भी। पति को गुजरे वर्षों हो गये, एक बेटा है जो अपनी पत्नी व बच्चों के साथ पास ही शहर में मकान बनाकर रहते हुए सब कुछ भूल चुका है। किन्तु उसे सब कुछ याद है, जब वह मजदूरी करके घर लौटती थी, थकी हारी, तो बेटे का चेहरा देखने मात्र से उसमें ताजगी का संचार हो जाता था। उसके लिये खुशी का कारण सिर्फ यह है कि शहर में उसके बेटे का मकान है और वह वहाँ खुश है। साल में दो चार बार हो आती है वहाँ किन्तु वहाँ न जाने उसे क्यों लगता है कि वह बोझ ही है उनके लिये, तो लौट आती है एक दो दिन में ही।

  इस बार भी गयी, दो दिन बेटे, बहू और पोते पोती को जीभर निहारकर लौट आई फिर गाँव। उसकी दिनचर्या फिर पहले जैसी हो गयी,सुबह जल्दी उठना,लकड़ी के लिये जाना, खेत और क्यारियों में काम करना, फिर खाना बनाना और खाकर मजदूरी पर चली जाना। शाम को घर लौटती तो कोई चेहरा नहीं होता था जिसे देखकर उसमें ताजगी आती। जल्दी खाना खाकर चुपचाप सो जाती थी। 

  शहर से गाँव आये छः दिन ही हुये थे उसे कि पहले हल्की खांसी आनी शुरू हुई। अगले दिन से बदन भी गर्म रहने लगा। वह फिर भी किसी तरह सुबह उठती और अपनी दिनचर्या के सभी काम करती, मजदूरी पर नहीं जा पा रही थी सिर्फ। फिर उसे एक सुबह सांस लेने में भी दिक्कत होने लगी तो वह दिनभर बाहर टहलती रही। शाम तक कुछ राहत मिली पर शरीर टूटने सा लगा। दिनभर कुछ भी नहीं बना पाई थी, तो भूख भी लग गयी थी। जैसे तैसे उसने खिचड़ी बनाई और निढाल होकर सो गयी।

  अगली सुबह जब वह उठी तब भी थकान सी थी पर वह अपने दैनिक कार्यों में जुट गयी। कुछ दिन यही क्रम रहा किन्तु उसने अपनी दिनचर्या के कार्य नहीं छोड़े।

  और एक दिन फिर वह मजदूरी पर लौट गयी।

  उसे पता ही नहीं है कि जो कोरोना मुम्बई जैसे असंख्य महानगरों, शहरों, गाँवों के लिये तबाही का सबब बना हुआ है, उसने उसी को मात दे दी है।

                                                      - जितेन्द्र राय ’जीत’   


      ’वह मजदूरन’  

     लेखक परिचय

नाम- जितेन्द्र राय ’जीत’

शैक्षिक योग्यता- एम. ए. ( अंग्रेजी), बी़ एड. 

जन्मतिथि- 06 अप्रैल 1981

कवि एवं लेखक

जिला अध्यक्ष

हिन्दी साहित्य भारती

चम्पावत।

मूलनिवास का पता- 

ग्राम- बजवाड़,

 विकास खण्ड- पाबौ

जिला- पौड़ी गढ़वाल

 उत्तराखण्ड

पिन- 246123

मोबाइल नम्बर- 8006551851

              9528475725

वर्तमान में राजकीय सेवा में चम्पावत, उत्तराखंड में कर्मरत।

Saturday, 24 April 2021

पुस्तक समीक्षा: अपना अपना जीवन



काव्य संग्रह:  अपना अपना जीवन

रचनाकार:  हिमांशु जोशी

प्रकाशक:  उत्कर्ष प्रकाशन

मूल्य:  ₹ 100 

" अतीत के सुनहरे पन्ने"

  अंग्रेजी में एक टर्म है  'Nostalgia'. इसे हिंदी में कहें तो'अतीत के सुखद प्रसंगों की याद से उभरी आनंद और विषाद की मिश्रित भावना।'  हम वर्तमान में जीतें हैं किंतु हमारे जीवन में जो वक्त सबसे अधिक आनन्द में बीता होता है, उस वक्त की यादें हमारे मनोमस्तिष्क में स्थायी हो जातीं हैं और हम उन पलों को, उस समय को पुनः पुनः जीना चाहते हैं। 'अपना अपना जीवन' काव्य संग्रह की अधिकतर रचनायें उसी सुनहरे अतीत की स्मृतियां हैं। काव्य संग्रह में संकलित रचनायें यथा ' बचपन की यादें' 'वो दिन पुराने' 'जब.....' 'स्कूल का बस्ता अच्छा था' कवि के हृदय में चिरस्थायी उस अतीत को ही रेखांकित करतीं हैं व फिर से उस वक्त में लौट जाने की अभिलाषा व्यक्त करतीं हैं।

बचपन की यादें कविता की कुछ पंक्तियां:

"पर कुछ धुँधली स्मृतियां मेरे बचपन की

अब भी मन को तड़पातीं हैं

मैं भुलाने का प्रयास करता हूँ इन्हें

पर ये आकर मेरे मन को उद्वेलित कर जातीं हैं।"

'वो पुराने दिन' कविता का तो आरम्भ ही उन मधुर स्मृतियों से होता है: वो पुराने दिन अच्छे थे

जब हम छोटे बच्चे थे।" 

' वो स्कूल का बस्ता अच्छा था' पाठकों को उनकी स्वयं की स्मृतियों में भी ले जाती है। 

"वो साइकिल वो सैर सपाटा, वो चूरन सस्ता अच्छा था,

इस बोझ भरे जीवन से तो, स्कूल का बस्ता अच्छा था".

प्रतिनिधि कविता  'अपना अपना जीवन' को भी मैं इसी श्रेणी में रखता हूँ। जब लेखक की मुलाकात एक अनजान व्यक्ति से होती है और फिर वह भी उन्हीं स्मृतियों का हिस्सा बन जाता है। वार्तालाप के उपरांत कवि का सुकोमल हृदय और सहृदयता इस कविता का सृजन कर लेती है व रचना उस व्यक्ति की आवाज बन जाती है।

"बेघर, बेसहारा, गरीब हैं हम

शायद इसीलिये हमारी आवाज की 

कहीं सुनवाई नहीं होती।"

 कवि की अपनी माँ के प्रति अथाह आस्था व श्रद्धा काव्य संग्रह में उन्हीं यादों की मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति है। यह आस्था व श्रद्धा ही उनके काव्य सृजन का आधार भी है, जैसा कि वह पुस्तक के 'समर्पण' पर भी अपने भाव व्यक्त करते हैं। 'इसलिये कि मेरी माँ हो तुम', 'तुम्हारी याद आती है, 'किस तरह....' रचनायें स्पर्श करतीं हैं।

"उँगली पकड़ चलना सिखलाया तुमने

जीवन का पहला पाठ पढ़ाया तुमने,

मेरी नन्हीं उड़ान का आसमां हो तुम

इसलिये कि मेरी माँ हो तुम।"

 कवि का प्रकृति प्रेम व सौंदर्यबोध उनके काव्य को सरस बनाता है साथ ही वह शहरीकरण पर अपनी चिंता भी व्यक्त करते हैं। ' बसन्त आ गया' कविता की कुछ पंक्तियाँ:

" प्रकृति की खिलखिलाहट, चिड़ियों की चहचहाहट

ऋतु की मादकता से हो जाता है आभास

कि बसन्त आ गया हैं।'

"पर जहाँ प्रकृति है न चिड़ियों के बसेरे

न ऋतु की मादकता न वृक्ष ही घनेरे

फिर वहाँ कैसे होगा आभास 

कि बसन्त आ गया है ?

उत्तराखण्ड के जनमानस के दर्द को बखूबी उकेरा गया है।   'एक कदम' 'उसके बिना' व 'मुझको भी आगे बढ़ना है' संदेशपरक रचनायें हैं जो काव्य संग्रह को सार्थकता प्रदान करतीं हैं।

काव्य कला की दृष्टि से देखूँ तो सभी रचनायें छंदबद्ध हैं। कुछ रचनाओं में कवि प्रारम्भ तो मुक्त भाव से करते हैं किंतु पुनः छंदबद्ध हो जाते हैं। अपनी बात को सीधे सीधे अभिव्यक्त करने के कारण कविताओं में अलंकारिकता से परहेज किया गया हैं। 

बिम्ब हिमांशु जोशी जी के काव्य की सबसे बड़ी विशेषता है। जैसे जैसे पाठक कविताओं में उतरता जाता है उसके मानस पटल पर गाँव, बचपन, घर, परिवार, खेल, प्रकृति के चित्र उभरने लगते हैं। रचनायें माधुर्य व प्रसाद गुण से परिपूर्ण हैं।

संक्षेप में कहूँ तो कवि अतीत को सँजो कर रखना चाहते हैं। उनकी स्मृतियों में खेत हैं, गाँव हैं, त्योहार हैं। वहाँ डाकिया है, अंतर्देशीय, पोस्ट कार्ड, दादा दादी व परियों की कहानियाँ, सँयुक्त परिवार, बचपन के खेल, शरारते, बहाने हैं और वहां ....माँ है।


समीक्षक: जितेन्द्र राय 'जीत'

लेखक व जिला अध्यक्ष

हिंदी साहित्य भारती

चम्पावत।

सम्पर्क: 8006551851

Monday, 19 April 2021

पुस्तक समीक्षा: मुझे वो दीप बना दो

 


पुस्तक समीक्षा

 काव्य संग्रह- मुझे वो दीप बना दो

कवयित्री- कमला वेदी

प्रकाशक- समय साक्ष्य

मूल्य- 100/-

"उम्मीद, विश्वास व हौसलों की कवितायें"

  अक्सर व्यक्ति विपरीत परिस्थितियों के सम्मुख आत्मसमर्पण कर देते हैं, गहन दुखों को ही नियति मान लेते हैं। कम ही व्यक्ति होते हैं जो कठिन वक्त पर भी अपने बुलन्द हौसलों व सकारात्मकता से विजय हासिल कर लेते हैं व निराशाओं के अंधेरों में भी उम्मीद का दीप रोशन कर लेते हैं। कमला वेदी जी का प्रथम काव्य संग्रह 'मुझे वो दीप बना दो' उन्हीं हौसलों, उम्मीदों व बुलंदियों को छूने की जिजीविसा की बानगी है। 

"दुनिया के जुल्मों सितम पर भी

मैं मौन गुंजार करती रही

दुनिया मेरी सहनशक्ति को 

मेरी कमजोरी समझती रही

मुझे वो आवाज बनना है

जो आवाज हजारों की हो चले

मुझे वो दीप बना दो

जो तूफ़ां में भी जले।"

   शीर्षक कविता 'मुझे वो दीप बना दो' उन हौसलों व उत्कर्ष छूने की उत्कंठा को बखूबी प्रस्तुत करती है। यही जिजीविसा आसमां छूना है कविता में भी झलकती है-

"किसको मिली मंजिल मुकम्मल यहाँ

मुझे बस खुद ही मुकाम तक पहुँचना है

कष्ट कंटकों को चीर आगे बढ़ना है।"

जीवन रणभूमि है कविता भी इसी सकारात्मकता व कुछ कर गुजरने के भाव को आगे  बढ़ाती है।

"दुर्गा, काली, चंडी बन मैं

जीवन रण कौशल दिखलाऊँगी

मर जाऊँ, मिट जाऊँ पर

अपना अस्तित्व जीतकर लाऊँगी।"

 काव्य संग्रह में सम्मिलित कवितायें समयांतराल में लिखी गई हैं अतः अंतःकरण के उद्घाटन के साथ ही अन्य विषय भी छुये गये हैं। कवयित्री की  प्रकृति के प्रति संवेदनशीलता व सौंदर्यबोध भी स्पर्श करता है। 'ईश्वर की रचना'  कविता की कुछ पंक्तियां-

"प्रकृति की हर दिशा, दशा

धूप छांव से निखरी है

पुष्प पल्लवों पर सिंदूरी

शबनमी छटा बिखरी है।"

श्रृंगारिक रचनाओं में सूफियाना तर्ज पर रूहानी प्रेम के भाव हैं। आत्मिक, उन्नत व बन्धनमुक्त श्रृंगारिक रचनायें यथा 'अंजुरी भर प्रेम का पात्र'  'गीत' ' एक तुम जो छेड़ दो' 'बंजर धरा'  उसी आत्मिक संयोग को प्रस्तुत करतीं हैं। 

"अशरीरी हो मिलन

रूप यौवन हो या ज़रा हो।" 

 पंक्तियां सदाबहार  'न उम्र की सीमा हो न जन्म का हो बंधन' गीत से भाव हृदय में जाग्रत करतीं हैं।

'विदीर्ण हृदय' कविता तकनीकी व सोशल मीडिया के युग में वास्तविक रिश्तों में आते रूखेपन पर  चिंता व्यक्त करती है। 

'टुकड़े टुकड़े हो गया 

माँ बाप का वजूद

पालकर कुर्सी दे दी

अब चुकाये रोकर सूद'

कोरोना संक्रमण और इससे उत्पन्न त्रासदी विकराल रूप धारण करती जा रही है। 'कोरोना और हालात' कविता में इस विषय पर सिर्फ चिंता ही व्यक्त नहीं कि गई है बल्कि चिंतन भी प्रस्तुत किया गया है। इंसानी स्वार्थपरकता, अति तृष्णा पर आक्रोश भी व्यक्त किया गया है। इसी विषय पर 'कोरोना का कहर' व 'समय की मार' कविताओं में कोरोना के मानव जीवन पर पड़ते प्रभाओं की सम्वेदनाओं को झकझोरती अभिव्यक्ति हुई है।

'देश के ये हालात हैं, हर तरफ कहर है

महामारी, भुखमरी हर ओर फैला ज़हर है।

'मुझे वो दीप बना दो' कविता संग्रह में कुल 36 रचनायें हैं। काव्य कला की दृष्टि से देखूँ तो ज्यादातर रचनायें छंदबद्ध हैं और इनमें लयात्मकता है। भाषा सहज, सरल होने के कारण आम पाठक भी कवयित्री के भावों से आसानी से जुड़ जाता है। अलंकारों का स्वाभाविक प्रयोग हुआ है यथा यमक अंलकार का एक उदाहरण 'जीवन रणभूमि है' कविता में -

"समय चक्र रेत है 

कस लूँ, कुछ पल कस के।"

बिम्ब और प्रतीक भी कवयित्री के काव्य को सहज बनाते हैं। 

काव्य गुण तीन प्रकार के होते हैं-

1.माधुर्य गुण, जो काव्य पाठक का हृदय आनन्द से द्रवित कर देता है।

2. ओज गुण, उत्साह उत्पन्न करता है।

3. प्रसाद गुण- मन प्रसन्नता से भर देता है।

 संग्रह की अधिकतर रचनायें ओज गुण से परिपूर्ण हैं जो पाठकों में उत्साह का संचार करतीं हैं।

'परिंदे' कविता में दार्शनिकता व प्रतीकात्मकता है।

  कमला वेदी जी का यह प्रथम काव्य संग्रह है तथापि उनकी रचनाओं में गहन भाव व परिपक्वता दृष्टिगोचर होती है। संक्षेप में कहूँ तो कवयित्री आदिशक्ति का आह्वान करतीं हैं, वर्तमान हालातों पर चिंता व्यक्त करतीं हैं व भविष्य हेतु सकारात्मकता का संदेश देतीं हैं।

समीक्षक-

जितेन्द्र राय "जीत"

लेखक व जिला अध्यक्ष

हिन्दी साहित्य भारती

चम्पावत।

छोटी सी जिंदगी

मरियल सा हो गया था वह, कंकाल मात्र। पिछले माह उसके आस पास बहुत चहल पहल थी, बहुत लाड़ प्यार से लाया गया था उसे यहाँ। बहुत से लोगों की आँखों ...