Thursday, 19 September 2019

सच्चू सीरीज की दूसरी कहानी "सच्चू की दीवाली"

"सच्चू की दीवाली"     (2)   Jitendra Rai
सच्चू को मिठाई की दुकान में काम करते छः माह हो गये हैं। घर से फोन आया तो उसे पता चला कि इस बार दीवाली में उसके चाचा के बेटे का भैला है। जैसा कि गढ़वाल में परम्परा है कि दीवाली में सबसे बड़े बेटे का एक बार पंचायत में भैला दिया जाता है, जिसमें एक बकरा या अपनी सामर्थ्यनुसार रूपये दिये जाते हैं। पूरा परिवार फूले नहीं समा रहा था। चाची का भी फोन आया कि हमारा सबसे बड़ा बेटा तो तू है। तू नहीं आयेगा तो हमारी खुशी अधूरी रह जायेंगी। सच्चू ने भुली विमुली के लिये दो सूट, मां के लिये दो साड़ियां व पिताजी के लिये एक पैंट कमीज खरीदीं। चाचा के बेटे पदम, जिसे वह पद्दू कहकर पुकारता था, के लिये खिलौने लिये।  दीवाली व दिल्ली। दुकानों पर ग्राहकों का तांता। क्षण भर की भी फुर्सत नहीं। मालिक से  छुट्टी की बात कैसे करे ? दीवाली से दो दिन पहले हिम्मत जुटाकर उसने छुटटी की बात कह ही दी। मालिक का पारा चढ़ गया। ऐसे समय पर ही तुम्हे छुटटी चाहिये होती है, साल भर में कमाई का यही तो समय होता है। सच्चू का दिल बैठ गया। रात ग्यारह बजे जब फुर्सत मिली तो फोन पर मां को सारी बात बताई। मां बोली भैले तो होते रहेंगे बेटा, नौकरी मत छोडना। घर का तो तुझे पता ही है पिताजी दिहाडी मजदूरी से कितना करेंगे। विमुली भी जवान होने लगी है, कल उसकी भी तो शादी करनी है।
    अगली सुबह सच्चू छः बजे उठा और नहा धोकर जल्दी ही दुकान पर पहुॅच गया। मालिक बहुत खुश हुआ। रात दस बजे जब दुकान बन्द करने का समय आया तो मालिक ने उसे एक किलो बर्फी व दो सौ रूपये दिये। वह अपने कमरे में आया और भूखा ही सो गया।
@Short stories by Jitendra Rai "Jeet"

Tuesday, 17 September 2019

'मिठाई'

"मिठाई" (1)
Jitendra Rai
सच्चू ने इसी साल इण्टर पास किया। आगे की कोई राह नहीं थी, न मां बाप के पास इतना पैसा कि आगे की पढ़ाई के लिये 25 किलोमीटर दूर पैठाणी भेज पाते। एक आम उत्तराखण्डी की तरह उसने भी दिल्ली की राह पकड़ी। जल्द ही एक मिठाई की दुकान में नौकरी भी मिल गई। 15 अगस्त को घर से छोटी बहन विमुली का फोन आया कि भैजी आज स्कूल में बहुत से कार्यक्रम हुये। गुरूजी तुम्हें याद कर रहे थे कि सच्चू की आवाज बहुत अच्छी थी। उसने बताया कि उन्हें बूंदी भी खाने को मिली जिसे बचाकर वह थोड़ा सा मां के लिये भी लाई। तभी एक ग्राहक आ गया और मालिक ने सच्चू से एक किलो बर्फी तोलने को कहा। उसे फोन काटना पड़ा। बर्फी तोलते हुये उसे 15 अगस्त की बूँदियों की याद आ गई और उसके मुंह में पानी भर आया.....क्षण भर पश्चात् आंखों में भी।
@ Short stories by Jitendra Rai "जीत"

मेमसाब

"मेमसाब" Jitendra Rai
  अभी अभी होटल से निकलीं थीं मेमसाब। एक अलहदा शान। कीमती वस्त्र। हर डग में शाहीपन। इधर उधर देखा और सब्जी मंडी में प्रवेश किया। बांछे खिल गईं सब्जीवालों की। हर नज़र उन पर स्थिर। हर कोई अपनी दुकान, रेहड़ी की तरफ उन्हें बुलाने लगा। बाजार में नई आस जगी थी। भीमू की दुकान पर कदम ठहरे  मेमसाब के। भीमू की तो सांसे ही थम गईं। आज तो काफी बिक्री हो जाएगी। सर माथे पर उठा लिया उसने मेमसाब को। बीच बीच में बाकी सब्जीवालों की इर्ष्यामय निगाहों का जायजा भी लेता जा रहा था। बोला मेरे यहाँ हमेशा ताज़ी सब्जियां ही होतीं हैं मेमसाब, क्या तोल दूं ? उलटतीं पटलतीं रहीं मेमसाब सब्जियों को, बिना कुछ बोले। कुछ भिंडिया तोड़ीं और  बोलीं आधा किलो तोल दो,  भिंडी तोड़ने का सिलसिला जारी रहा। भीमू खुशी खुशी तोलने लगा। जब कांटा बीचों बीच आया तो भड़क उठीं मेमसाब। कितना मुनाफा कमाओगे, कुछ तो झुकने दो कांटे को। भीमू ने कुछ भिंडियां और बढ़ा दीं और थैली में डाल दीं। मेमसाब ने तोड़ी हुई भिंडियां उसी थैली में रख दीं। फिर बारी आई बैंगन, बीन्स की। कीड़े होते हैं बैगन में, बीन्स अक्सर कोमल नहीं होतीं कहकर उन्हें भी तोड़ना मसलना शुरू कर दिया। कांटा भी झुकवा लिया, तोड़े मरोड़े बैंगन व बीन्स जबरन थैली में प्रवेश करते रहे। तीनों सब्जियां आधा आधा किलो ही। खुशी खुशी भीमू ने थैली मेमसाब को थमा दी। फिर भड़क उठी मेमसाब। सब्जियों के साथ मिर्च और धनिया तो सभी देते हैं, तुम अनोखे हो शायद। भीमू ने मुठ्ठीभर हरी मिर्च और हरा धनिया भी डाल दिया। कुल पैसों का मेमसाब ने राउंड फीगर भी करवा लिया, और चल पड़ीं उसी शाही शान से। भीमू खुश था। अगल बगल के सब्जीवाले इस दरमियान भीमू के नफे नुकसान का आगणन कर चुके थे। धेले भर का भी मुनाफा नहीं हुआ था भीमू को।
@ Short stories by Jitendra Rai "जीत"

Sunday, 15 September 2019

चूल्हा

"चूल्हा"
Jitendra Rai
बहुत गर्मी थी आज। कूलर, पंखा भी गर्म हवा ही दे रहे थे। अपने स्मार्टफोन पर उसने आज का उच्चतम तापमान सर्च किया। उफ्फ! ये गर्मी। वह बचैन हो उठा। खिड़की खोली। बाहर हॉटमिक्स सड़क बन रही थी। खौलते चारकोल पर काम करता महुआ सुकून महसूस कर रहा था कि माह दो माह उसके घर का चूल्हा जलता रहेगा।
@ Short Stories by Jitendra Rai "Jeet".

छोटी सी जिंदगी

मरियल सा हो गया था वह, कंकाल मात्र। पिछले माह उसके आस पास बहुत चहल पहल थी, बहुत लाड़ प्यार से लाया गया था उसे यहाँ। बहुत से लोगों की आँखों ...